सिर्फ थकान ही नहीं, 170 से ज्यादा बीमारियों की जड़ बन सकती है नींद की अनियमितता

dainik khabar

एक नई वैश्विक रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि अच्छी नींद न लेना सिर्फ थकान या चिड़चिड़ेपन तक सीमित नहीं, बल्कि यह 170 से अधिक बीमारियों की जड़ बन सकती है। चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी और आर्मी मेडिकल यूनिवर्सिटी द्वारा 88,000 से ज्यादा लोगों पर किए गए अध्ययन में सामने आया कि नींद की अनियमितता से दिल, दिमाग, लिवर, और मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि नींद केवल विश्राम का माध्यम नहीं, बल्कि एक बुनियादी जरूरत है। पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नींद न लेने पर शरीर के हर सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है, जो लंबे समय में गंभीर रोगों को जन्म दे सकता है।

शोध में नींद से जुड़ी छह आदतों की जांच
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने नींद की अवधि, नींद आने का समय, नींद का चक्र, नींद की गहराई, गुणवत्ता और रात में बार-बार जागने जैसी आदतों का विश्लेषण किया। निष्कर्षों के अनुसार, जो लोग हर दिन अलग-अलग समय पर सोते-जागते हैं, उनमें बीमारियों का जोखिम स्थायी रूप से बढ़ जाता है।

रात 12:30 बजे के बाद सोने वालों में लिवर सिरोसिस का खतरा 2.6 गुना अधिक देखा गया।

पार्किंसन रोग का जोखिम 2.8 गुना और टाइप-2 डायबिटीज का खतरा 1.6 गुना बढ़ा।

दिल और दिमाग को भी झेलनी पड़ती है मार
रिपोर्ट में बताया गया कि खराब नींद हृदय और मस्तिष्क की सेहत पर भी गहरा असर डालती है।

अनिद्रा और स्लीप एपनिया जैसी स्थितियाँ हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाती हैं।

नींद की कमी से उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह, और सूजन की समस्याएं सामने आती हैं।

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक अन्य अध्ययन में पुष्टि की गई कि अनियमित नींद सीधे तौर पर हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों से जुड़ी होती है।

याददाश्त और मानसिक सेहत पर भी असर
नींद की कमी का असर मानसिक क्षमताओं पर भी पड़ता है। लगातार कम नींद लेने वालों में याददाश्त कमजोर होने, निर्णय क्षमता में गिरावट और ध्यान भटकने की समस्या देखी जाती है। दीर्घकालिक तौर पर इससे अल्जाइमर जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है।

नींद की अनदेखी से क्या-क्या हो सकता है नुकसान?
विशेषज्ञों के अनुसार, सभी उम्र के लोगों के लिए पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। अनियमित नींद के कारण:

शरीर में स्ट्रेस हार्मोन ‘कोर्टिसोल’ का स्तर बढ़ता है और मेलाटोनिन का स्तर बिगड़ता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे इंफेक्शन का खतरा बढ़ता है।

भूख बढ़ाने वाला हार्मोन घ्रेलिन बढ़ता है, जबकि भूख को नियंत्रित करने वाला हार्मोन लेप्टिन घटता है, जिससे वजन बढ़ सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.